ग्रेजुएट स्टूडेंट्स के लिए सही लैब चुनना सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक होता है। इसीलिए ये ज़रूरी है की आप इस प्रक्रिया को अच्छी तरह समझे और जितने अधिक जानकारी संभव हो, इक्कठा करे तककि आप अपने करियर लक्ष्यों के अनुसार लैब और सलाहकार चुन सके। इस ब्लॉग का उद्देश्य यही है की आप समझ सके लैब रोटेशन कैसे काम करता है और आप एक समझदारी भरा निर्णय ले सके।
सबसे पहले स्टडी प्रोग्राम की बात करते है। ग्रेजुएट प्रोग्राम दो मॉडलों पर आधारित होते है -- प्रोफेसर बेस्ड या कोहोर्ट बेस्ड। पहले मॉडल में, आपको किसी प्रोफेसर से सीधा संपर्क करना होता है और उनके रिसर्च ग्रुप में शामिल होने के लिए संपर्क करना पड़ता है। दूसरे मॉडल में, आप सीधे ग्रेजुएट प्रोग्राम में आवेदन करते है और एक कोहोर्ट (छात्र समूह) में शामिल होते है। कोहोर्ट में शामिल होने के बाद, आप लैब रोटेशन के ज़रिये किसे लैब को चुनते है। इस ब्लॉग का फोकस कोहोर्ट मॉडल पर है, लेकिन दिए गए सुझाव प्रोफेसर बेस्ड प्रोग्राम में रिसर्च ग्रुप चुनने के लिए भी मदद करेंग।
लैब रोटेशन क्या होता है?
लैब रोटेशन का मतलब है कि छात्र कुछ हफ्तों के लिए अलग-अलग रिसर्च लैब्स में काम करते हैं। इस दौरान छात्र विभिन्न रिसर्च प्रोजेक्ट्स के बारे में सीखते हैं, अलग-अलग लैब का माहौल अनुभव करते हैं, और अलग-अलग रिसर्च टीमों के साथ काम करने का मौका पाते हैं। यह एक बेहतरीन अवसर होता है जहाँ छात्र लैब के बाकी सदस्यों से मिल सकते हैं और उस ग्रुप के काम करने के तरीके और वातावरण को करीब से समझ सकते हैं।
लैब रोटेशन के फायदे -
- खोज और अनुभव
लैब रोटेशन आपको विभिन्न रिसर्च क्षेत्रों और कार्य विधियों को जानने का मौका देता है। यह अनुभव उन छात्रों के लिए फायदेमंद होता है जो अभी तक अपने रिसर्च इंटरेस्ट तय नहीं कर पाए हैं या जो बहु-विषयी काम करना चाहते हैं। इससे आपको रिसर्च के अलग-अलग तरीकों को देखने का मौका मिलता है, जिनके बारे में आपने पहले सोचा भी नहीं होगा। साथ ही, आप नई स्किल्स भी सीख सकते हैं जो भविष्य में आपके लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं।
- लैब का प्रत्यक्ष अनुभव
जब आप किसी लैब में रोटेशन करते हैं, तो आपको उस लैब का काम करने का तरीका और रिसर्च का वातावरण प्रत्यक्ष रूप से समझने का मौका मिलता है। यह जानकारी बेहद ज़रूरी होती है ताकि आप समझ सकें कि आप उस लैब के माहौल में फिट बैठते हैं या नहीं, और क्या आप वहाँ बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे।
पढ़कर रिसर्च की जानकारी लेना और खुद जाकर देखकर समझना, इन दोनों में बड़ा फर्क होता है। हो सकता है जो रिसर्च आपको पेपर में रोचक और मज़ेदार लगा हो, वह असल में वैसा न हो और उससे काफी अलग हो।
- नेटवर्किंग के अवसर
अलग-अलग लैब्स में काम करने से छात्रों को अलग-अलग बैकग्राउंड वाले मेंटर्स और साथियों के साथ संपर्क बनाने का मौका मिलता है। चाहे आप किसी लैब को अंत में जॉइन न करें, वहाँ के लोग आपके ग्रैजुएट करियर के दौरान और उसके बाद भी आपके लिए मददगार हो सकते हैं।
चुनौतियाँ और ध्यान रखने योग्य बातें
हालाँकि लैब रोटेशन के कई फायदे हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ और बातें हैं जिनका ध्यान रखना ज़रूरी है-
- समय प्रबंधन
कोर्सवर्क और अन्य कामों के साथ कई लैब रोटेशन को संतुलित करना मुश्किल हो सकता है। इस अनुभव का पूरा लाभ उठाने के लिए अच्छे टाइम मैनेजमेंट करना ज़रूरी हैं।
- लैब में समायोजन
रोटेशन के दौरान खुद को लैब में पूरी तरह शामिल करना और चल रहे प्रोजेक्ट्स में योगदान देना समय ले सकता है। इसलिए कुछ रोटेशन में रिसर्च की प्रगति कम हो सकती है।
- निर्णय लेने का दबाव
अगर आपने कई रोटेशन की है, तो सही सलाहकार चुनने का निर्णय थोड़ा कठिन हो सकता है। इस स्थिति में सोच-समझ कर निर्णय लेना ज़रूरी है ताकि आप अपने लिए सबसे उपयुक्त लैब चुन सकें।
लैब रोटेशन प्रक्रिया
- लैब रोटेशन कैसे शुरू करें?
लैब रोटेशन के लिए कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं होती, और हर रिसर्च ग्रुप का तरीका अलग होता है। लेकिन ज्यादातर छात्र कुछ सामान्य बातों का पालन करते हैं।
पहला कदम होता है प्रोफेसर से संपर्क करना और उन्हें बताना कि आप उनकी लैब में रोटेशन करना चाहते हैं। यह ईमेल के माध्यम से किया जा सकता है या आप सीधे उनके ऑफिस या लैब जाकर मिल सकते हैं। कुछ मामलों में, खासकर जब प्रोफेसर बहुत बिजी होते हैं, ऐसे में, उनके ग्रुप के छात्रों से बात करना आसान होता है। वे आपको बता सकते हैं कि उस लैब में रोटेशन कैसे शुरू करना है।
- लैब रोटेशन शुरू करना
आप पहले प्रोफेसर से मिलते हैं ताकि आप अपने रुचि के विषयों और लैब में हो रहे रिसर्च पर चर्चा कर सकें। इसके बाद आपको किसी ऐसे छात्र के साथ काम करने के लिए जोड़ा जाता है जो उस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हो जिसमें आपकी रुचि हो।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आपको किसी विशेष छात्र के साथ नहीं जोड़ा जाता, और आप लैब के सभी छात्रों के साथ बातचीत कर सकते हैं और देख सकते हैं कि वे कैसे काम करते हैं। इस स्थिति में, आपको स्वयं पहल करनी होती है - छात्रों से उनके काम के बारे में पूछना और यह जानना कि क्या आप उनका कार्य देखने या सीखने आ सकते हैं।यह एक बेहतरीन मौका होता है खुद को लैब के हर पहलू में पूरी तरह शामिल करने का।
- रोटेशन खत्म करना
जब रोटेशन (लगभग तीन हफ्तों बाद) पूरा हो जाता है, तो आपको उस रोटेशन के दौरान अपने अनुभव का एक रिपोर्ट तैयार करना होता है।यह कोई लैब रिपोर्ट नहीं होती, बल्कि इसमें आप यह बताते हैं कि आपने क्या सीखा, आप क्यों उस लैब में शामिल होना चाहते हैं, और आप उस ग्रुप में कैसे फिट हो सकते हैं।
यह याद रखना ज़रूरी है कि यह रिपोर्ट प्रोफेसर को भी भेजी जाती है, इसलिए भले ही आपको वह लैब पसंद न आई हो, फिर भी भाषा का प्रयोग सम्मानजनक होना चाहिए।
- पूरा रोटेशन पूरा होने के बाद
जब सभी लैब रोटेशन पूरे हो जाते हैं, तब आपको डिपार्टमेंट को तीन लैब्स की एक सूची भेजनी होती है जिनमें आप शामिल होना चाहेंगे (सबसे पसंदीदा से लेकर कम पसंदीदा तक क्रम में)।इसके बाद डिपार्टमेंट आपकी लैब असाइनमेंट की प्रक्रिया शुरू करेगा।
- लैब असाइनमेंट प्रक्रिया
डिपार्टमेंट सभी छात्रों से मिली तीन पसंदीदा लैब्स की सूचियों को इकट्ठा करता है और असाइनमेंट प्रक्रिया शुरू होती है।
यहाँ डिपार्टमेंट कोशिश करता है कि हर छात्र को उनकी पहली पसंद की लैब मिले।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी एक लैब में बहुत से छात्र रुचि रखते हैं लेकिन वहाँ सीमित जगह होती है।
ऐसी स्थिति में, प्रोफेसर को उन सभी छात्रों की सूची भेजी जाती है जिन्होंने उनकी लैब चुनी है, और प्रोफेसर तय करते हैं कि वे किन छात्रों को स्वीकार करेंगे।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि उस सूची में यह नहीं बताया जाता कि किसी छात्र ने उस लैब को पहली, दूसरी या तीसरी पसंद के रूप में चुना था - इसलिए सभी को बराबरी का मौका मिलता है।
इसलिए कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि छात्रों को उनकी दूसरी या तीसरी पसंद की लैब असाइन की जाए।
बेहतर लैब रोटेशन अनुभव के लिए सुझाव
- रोटेशन को गंभीरता से लें
प्रोफेसर और उनके ग्रुप के छात्र अपने लैब और ग्रुप माहौल को लेकर सजग होते हैं। अगर आप समय पर नहीं आते या रुचि नहीं दिखाते, तो उस लैब में शामिल होने की संभावना कम हो जाती है।
- जितने हो सके उतने छात्रों का काम देखें
हर रिसर्च ग्रुप में अलग-अलग छात्र अलग-अलग प्रोजेक्ट्स और विषयों पर काम करते हैं। यदि आप कई छात्रों से सीखते हैं, तो आपको रिसर्च के विभिन्न पहलुओं को जानने और यह समझने का मौका मिलेगा कि आपकी रुचि किस ओर है।
- जितने हो सकें उतने सवाल पूछें
यह मौका है कि आप लैब और प्रोफेसर के बारे में जितना हो सके जानें। हर छात्र का लैब अनुभव अलग हो सकता है, इसलिए सभी छात्रों से बात करें। कई बार छात्रों से मिली जानकारी प्रोफेसर से मिली जानकारी से अलग हो सकती है।
अगर आपको कोई लैब पसंद आए, तो उसमें रुचि दिखाएं और वहां जातें रहें। यह थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि समय सीमित होता है। फिर भी, अगर आपको कोई लैब पसंद आती है, तो वहाँ जितना समय दे सकें, दें। ग्रुप मीटिंग्स में शामिल हों, छात्रों और प्रोफेसर से संपर्क में रहे, और लगातार अपनी रुचि दिखाते रहें।
- प्रोजेक्ट खत्म करने का तनाव न लें
रोटेशन का समय छोटा होता है और इसका उद्देश्य यह है कि आप सीखें और समझें कि उस लैब में क्या काम हो रहा है।
कोई आपसे यह उम्मीद नहीं करता कि आप तीन हफ्तों में कोई प्रोजेक्ट पूरा कर लेंगे।
- किसी लैब के लिए दुश्मनी न पालें
समझना ज़रूरी है कि यह प्रक्रिया कभी-कभी प्रतियोगिता जैसी लग सकती है, खासकर जब एक ही लैब में कई छात्र रुचि रखते हों और सीटें सीमित हों।आपका कोहोर्ट ही वह समूह है जो आपके साथ अगले 4–5 साल ग्रैजुएट स्कूल की यात्रा में रहेगा। इन रिश्तों को बनाए रखना ज़रूरी है।अपने समय और ऊर्जा को यह सुनिश्चित करने में लगाएं कि आपकी रुचि प्रोफेसर और छात्रों को दिखे न कि आपस में टकराव करके अपनी छवि खराब करें।
- सूचि सबमिट करने से पहले प्रोफेसर से बात करें
अगर रोटेशन पूरे हो जाएं और आपको कोई पसंदीदा लैब मिल जाए, तो उस लैब के प्रोफेसर से व्यक्तिगत रूप से मिलें।
इस बातचीत में आप उन्हें बता सकते हैं कि आप उनकी लैब को अपनी पहली पसंद के रूप में क्यों चुनना चाहते हैं।
कुछ प्रोफेसर साफ-साफ बता देंगे कि वे आपको लेंगे या फिर संकेत करेंगे कि आप “दूसरे विकल्पों पर भी ध्यान दें”।
जो भी हो, यह बातचीत आपको यह तय करने में मदद करेगी कि आप किस क्रम में अपनी लैब पसंदें सबमिट करें।
अंत में
आशा है कि यह ब्लॉग आपके लिए मददगार रहा होगा और आपको लैब रोटेशन प्रक्रिया को समझने में सहायता मिली होगी जिससे आप सोच-समझकर निर्णय ले सकें और अंत में वही लैब चुन सकें जो आपके लिए सबसे उपयुक्त हो।
अनुवादक के बारे में
देवेश अवस्थी उत्तर प्रदेश (भारत) से हैं। वे राइस यूनिवर्सिटी के रसायन‑विभाग में अपनी पीएचडी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी बैचलर‑डिग्री दिल्ली विश्वविद्यालय से तथा मास्टर्स‑डिग्री भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर से प्राप्त की है। और पढ़ें
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